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Author: Navneet Kaur Gill

 

कहते हैं इश्क उस रब की इबादत है, इस इबादत से ऊपर कुछ भी नहीं। यह पुस्तक "मुरीद और आशिक" की तड़प का वर्णन करती है। महबूब कभी भी दो नहीं हो सकते, वो एक ही है, अगर दो है तो इश्क की तोहीन है, एक से शुरू और एक पर ही खत्म। यह उस इशक की बात है जहाँ से जीते-जी-वापस आना ना-मुमकिन है। इश्क तो फना हो जाने का नाम है। इश्क किया नहीं जाता इश्क हो जाता है। जैसे एक बुंद समंदर में जा मिली फिर वो बुंद नहीं रही,अपना-आप त्याग कर समंदर हो जाती है। उसी तरह हम रब को पा नहीं सकते उसमें समा सकते है लीन हो सकते है। जैसे परमात्मा की सिफत-सलआह को लफ़्ज़ों में बयाँ नहीं किया जा सकता बैसे ही इश्क को भी बयाँ नहीं कर सकते। इश्क इबादत है, शहादत है, इनायत है। महोब्बत रूह की खुराक है न कि जिस्मो की, जिस्मो के सिर्फ खेल होते हैं

Rahmat-E-Khuda

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