तुम बिन जाऊँ कहाँ, Author: रोमी साहेब
Follow along on a journey through seven colors of love in this book.
From attraction to devotion, experience the ups and downs of love through the eyes of the poet. Each page reveals a new hue of love, this book captures the essence of human emotion.
Tum Bin Jau Kaha
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मेरे बारे में जितना आप जानते है उतना शायद पर्याप्त है
क्योंकि मुझे और करीब से जानने की कोशिश
आप को एहसास कराएगी की असल में ये शख़्स कवि नही है कोई और है ।क्योंकि रोमी साहेब नाम मेरे जिस्म से जुड़ा है
जब की मेरी आत्मा किसी और के ही नाम से जानी जाती है,
मेरा वजूद मेरा नहीं है, बल्कि उसका वजूद मेरी हक़ीकत है
एक उसके होने से ही मेरा ये होना है । मैं तमाम रातें जाग कर
जो स्याही कागज़ पे लिखता था अब सोचता हूं तो समझ आता है अपना कहाँ लिखा कुछ कभी सब उसका ही दिया है ।
उसी से आया है उसी को सौंप रहा हूँ,
जैसे शिव से आया जीवन अंत में शून्य होके
शिव में ही समा जाता है
मैं भी निरंतर उस में ऐसे ही समा रहा हूं ।











